भारत अखंड था, है और सदैव रहेगा । यही हमारे मातृभूमि की एकमात्र पहचान है । विविधता में भी अविरल एकता का होना । चाहे लोग जितने जोर लगा लें यहाँ नफरत न बो सकेंगे , हमारी मिट्टी की तासीर ही ऐसी नहीं । तो प्रस्तुत है ,मेरी लेखनी से एक कविता …..
विचारों में समानताएँ ही नहीं होंगी ,
स्वदेश में विविधताएँ ही नहीं होंगी ।
तो क्या देश ? कभी देश कहलाएगा ,
विश्व क्या कभी उसकी गाथा गाएगा ?
★किसी भी राष्ट्र को ससक्त व समृद्ध होने के लिए भिन्न-भिन्न विचारों का होना भी आवश्यक है । उन विभिन्नताओं में जो अविरल एकता होती है वही राष्ट्र को राष्ट्र होने का बोध कराती है । विश्व में एक प्रतिष्ठित देश वही है जहाँ अनेक भिन्नता के बाबजूद भी एक अनोखी एकता प्रदर्शित हो और समस्त देशवासी उसी पर कार्यरत होकर आगे देशहित के भाव से जूटे हो तो वो राष्ट्र श्रेष्ठ राष्ट्र कहलाने योग्य हो जाता है ।
पर इन बातों को कौन समझाएगा ?
देश हित की शिक्षा कौन दिलाएगा ?
यहाँ तो मजहबों की छिड़ी लड़ाई है ।
सब अपने-अपनों की दे रही दुहाई है।।
★उपर्युक्त पंक्तियों से ये स्पष्ट है कि हम जिस विश्व विकसित राष्ट्र की कल्पना करते है उसमें घृणा ,द्वेश, इन तुच्छ चीज़ों का कोई स्थान नहीं है । परन्तु प्रश्न ये है कि इन बिंदुओं पर परिचर्चा कौन करे ? यहाँ तो लोग आपस में धर्म ,जाति, रंग इनको लेके आपसी रंजिश में जूटे हैं । सब ने अपने-अपने अनुकूल अपने सफाई के लिए अपनी उत्तर पुस्तिका का भी निर्माण कर रखा है। ये आखिर विडंबना नहीं तो और क्या है ?
ये न भूलो ! भारत के अभिमान हैं ,हम ।
उससे मिली ही उसकी पहचान हैं, हम ।।
ये वतन हमारा है, हम हमारे वतन के हैं ।
जितने फूल खिले यहाँ इसी चमन के हैं।।
★ यदि राष्ट्र हमारा है तो ये ज्ञात होना महत्वपूर्ण है कि राष्ट्र का गौरव राष्ट्र के लोग ही होते हैं । हम स्वयं अपने देश की पहचान है । ये राष्ट्र हमारा है ,हम हमारे राष्ट्र के हैं । यहाँ जिसने भी जन्म लिया है ,चाहे वो जिस घर की आँगन में फूल बन आ खिला हो ,आख़िरकार है तो इसी मिट्टी का । तो फ़िर भेद भाव का प्रश्न कहाँ से चला आता । इससे ये तो स्पष्ट हो ही जाता है कि ये सब प्रश्न बस मानसिक विकार की उत्पत्ति मात्र है । इसका वास्तविक से कोई सन्दर्भ नहीं है।
तो प्रेम के स्वरूप भारत माँ का मान करें ,
उनके समक्ष शीश झुकाकर सब लोग-
मिलकर अपने मातृभूमि का सम्मान करें ।
व राष्ट्र धर्म को ही परम् धर्म मानकर हम-
सब एक हो अपने राष्ट्र पर अभिमान करें।।
★इसलिए प्रेम तथा आदर की प्रतिमूर्ति अपने भारत वर्ष का अभिनंदन व मान करना हमारे लिए राष्ट्र गौरव की बात है । यदि हमारा तिरंगा एक है तो हमारी निष्ठा भी एक होनी चाहिए ,देश व देशवासियों के हितार्थ के लिए । “सर्व धर्म सम्भाव” की उच्च विचारधारा के अन्तर्गत सब को प्रेम पूर्वक एक मत होकर राष्ट्र धर्म को सर्वोच्च मानते हुए अपने राष्ट्र के अभिमान का प्रतीक बनना ही सबसे उत्तम देशभक्ति की परिभाषा कहलाएगी ।
उपर्युक्त वाक्यों को पढ़ने के पश्चात मैं ये अपेक्षा करना कदाचित गलत नहीं समझ रहा कि आपके मन में प्रश्न नहीं आएँगे । अवश्य आएँगे और आने भी चाहिए । किन्तु मेरी आप सबसे ये नम्र विनती है कि इसे अपने साथ-साथ अपने राष्ट्र ,अपने भारत ,अपने हिन्दुस्तान, अपने आर्यावर्त की भक्ति के डोरी को थामे हुए अपने मन में उत्पन्न हुए प्रश्नों के उत्तर के लिए अपनी अंतरात्मा को टटोले । मुझे विश्वास है कि आप सफल होंगे और साथ ही साथ मुझे अपने लिखे गए शब्दों का पारितोषिक भी मिल जाएगा ।
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अप्रतिम
बहुत बढ़िया 👌
भारत माता की जय 🇮🇳
Very nice article 👌👌
Jai hind jai Bharat 🇮🇳🇮🇳
Bhut Badhiya 😍👌
बहुत ही जरूरत है ,आप जैसे युवा को आगे आने की । आप देश के बारे में सोच रहे है ,बहुत अच्छी बात है ।
We were united,we are and we will.
Jai hindi .🇮🇳🇮🇳🇮🇳.
Jai hindutva Jai bharat Jai Parshuram